Saturday, 24 December 2016

अघोरनाथ दर्शन साधना


साबर साधनाओ के अद्बुध करिश्मो के बारे मे तो सब परिचित ही है. अघोर मार्ग का उद्धार करने वाले भगवान श्री दत्तात्रेय और साबर मंत्रो का सबंध अपने आप मे अटूट है. श्री दत्तभगवान की प्रेरणा तथा आशीर्वचन से नाथ योगियो द्वारा साबर मंत्रो का प्रचार प्रसार हुआ था. इस प्रकार अघोर साधनाओ मे भी साबर मंत्रो का प्रयोग प्रचुरमात्रा मे होने लगा था. अघोरी के लिए भगवान अघोरेश्वर मुख्य देव है, जिनके मुख से समस्त तन्त्रो का सार निकलता रहता है. जो शिवतत्व को अपने अंदर स्थापित कर सदा शिव आनंद से युक्त हो कर अपने आप मे ही लिन रहता है वही अघोरी है. सिद्ध अघोरी की यही पहचान है जो अघोरेश्वर की तरह ही निर्लिप्त रहता है समस्त विकारों भेदभाव तथा पाशो के बंदन से छूट गया है. ज़रुरी नहीं की वह स्मशान भष्म से युक्त हो, नग्न रहे या घृणा पर विजय होने का प्रदर्शन करे. जो इन सब से ऊपर उठ चूका हो, जिसके लिए ये भेद ही न हो, वही तो है अघोरी. किसी समय मे इनका घर मे आना, स्वयं शिव के आने जितना सौभाग्यदायक माना जाता था लेकिन कुछ स्वार्थपरस्तो ने तो कुछ हमारी अवलेहना भ्रम और कुतर्क ने इस मार्ग का ग्रास कर उसे भय का रूप दे दिया. खेर, अघोरी के लिए यह ज़रुरी है की वह अघोरेश्वर के चिंतन मे लिन रहे. भगवान अघोरेश्वर स्मशान मे बिराजमान है, सर्पो से लिप्त वह स्मशान भस्म को धारण किये हुए है. जिनके चेहरे पर आनंद ही है तथा और कोई भाव हे ही नहीं. ऐसे अघोरेश्वर के श्रेष्ठ रूप का ध्यान करना साधक के लिए उत्तम है. प्रस्तुत साधना भगवान अघोरेश्वर के इसी रूप के दर्शन प्राप्त करने की साधना है. वस्तुतः यह अपने आप मे अत्यधिक महत्वपूर्ण साधना है जिसको करने के बाद साधक का चित हमेशा निर्मल रहता है, भेद से मुक्ति मिलती है तथा सर्वसर्वात्मक भाव का उसमे उदय होता है. साथ ही साथ अघोरेश्वर के वरदान से साधक अष्टपाशो से मुक्त होने लगता है. इस प्रकार की भावभूमि प्राप्त होते साधक को विविध प्रकार की साधनाओ मे सफलता प्राप्त होने लगती है. वैसे भी अघोरी के लिए यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण क्रम है की साधनामार्ग के इष्ट के दर्शन कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करना.

साधक को चाहिए की वह इस साधना को स्मशान मे ही सम्प्पन करे. रात्री मे ११:३० के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए. साधना को सोमवार से शुरू करे. साधक को स्नान कर अघोर गुरु पूजन सम्प्पन कर विशेष शाबर मन्त्र का ५१ माला जाप करना चाहिए. मंत्र जाप के लिए साधक को रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए. आसान तथा वस्त्र काले हो. आसान के निचे चिता भष्म को बिछा देना चाहिए. इस क्रम को ११ दिन तक करने पर विविध अनुभूतिया होने लगती है, साधक जब इसे २१ दिन कर लेता है तब उसे भगवान अघोरेश्वर के दर्शन होते है.

 अघोर अघोर प्रत्यक्ष वाचा गुरु की अघोरनाथ दर्शय दर्शय आण सिद्धनाथ की

साधक को भयभीत ना हो कर वीर भाव से यह साधना करनी चाहिए.



Everyone knows about miracle effects of sabar sadhana. There is a strong relation between up lifter of aghora way shri dattatreya and sabar mantra. With blessings and order of bhagwan datt, Nathyogi Disseminated sabar mantras.  This way, in aghor sadhana also use of sabar mantra started widely. For aghori, god Aghoreshwara is major diety from whose holy mouth abstract of all tantras keeps on coming. The one who have established Shivtatva within and being merged with Shiva joy remain lost on one’s internal self is true Aghori. Identification of true Aghori is the one who stays detached mind from all the disorders & discriminations and those who have left all the boundations. Not require that he remains with smashana ash, naked or exhibits his victory over disgusts. One who has become above all these, the one who do not have these differentiations, that one is Aghori.  At some era, it was counted a great boon like visiting Shiva, if aghori visit the home but this great way became defected and re presenter of fear by few selfish and somewhat our ignorance, fallacy and sophism. Anyways, for aghori it is essential to remain in contemplation of Aghoreshwara. God Aghoreshwar is seated in Smashana, wearing smashana bhasma he is accompanied with snakes. The one who have only joy on the face and no more expression. Such meditation of aghoreshwara is boon full for sadhak. The presented sadhana is sadhana to have glimpses of the same meditated aghoreshwar. Literally this sadhana is very important sadhana when accomplished will give internal purity of the soul, get relief from differentiations and gets humour development in Sarvasarvaatmak thinking. With that blessing of Aghoreshwar is gain to get relief from eight basic loop traps or Astapasha. Reaching such mentality level, sadhak will start getting success in various sadhana. With that this is an important order for aghori to get blessings through glimpses of Isht Aghoreshwara in the long way of sadhana.
Sadhak should do this sadhana in Smashana only (cremation ground). One should start this sadhana after 11:30 in night. Sadhana could be started from Monday. Sadhak should take bath and complete Aghor Guru Poojan, after that one should chant 51 round of special sabar mantra. For mantra chanting one should use rudraksha rosary. Aasana and cloths should be black in colour. One should spread ash of cremation under aasana. If this process in continues for 11 days, one will start having divine experiences, when sadhak completes 21 days of the process at that time god Aghoreshwar will give glimpse to sadhak.

Om Aghor Aghor Pratyaksh Vaachaa Guru Ki Aghoranaath Darshay Darshay Aan Siddhanaath ki

Sadhak should not get scare and with courage one should proceed in sadhana.

AAYURVED TANTRA SADHNA



आयुर्वेद में सौंदर्य प्रदाता विविध प्रयोग पाए जाते हैं.जिनके प्रयोग से निश्चित ही पूर्ण सुंदरता की प्राप्ति होगी.परन्तु वे प्रयोग यदि निम्न मन्त्र के साथ प्रयोग किये जाये जो अद्भुत और तीव्र प्रभाव प्रदान करते हैं. आयुर्वेद में भी बिना अभिमंत्रित किये वनस्पति का सेवन नहीं किया जाता है,परन्तु कतिपय आलस के कारण लोगो ने इस प्रभाग का प्रयोग करना ही बंद कर दिया जिसके फलस्वरूप जो प्रभाव होना चाहिए ,वो नहीं मिल पता है.आप खुद ही एक काम करियेगा ,नीचे जो प्रयोग दिए गए हैं उन्हें किसी को बगैर मंत्र के प्रयोग करवाकर देखिये और दुसरे को मन्त्र के साथ.प्रभाव आपको खुद ही आश्चर्यचकित कर देगा. जब भी आपको सौंदर्य से सम्बंधित कोई प्रयोग करना हो,उस सामग्री या वनस्पति को आप निम्न मंत्र से ३२४ बार अभिमंत्रित कर दे फिर प्रयोग करे.ये वज्रयान साधना का मंत्र है जो स्वतः ही सिद्ध है,इसे पृथक रूप से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है.

ॐ क्लीं अनंग रत्यै पूर्ण सम्मोहन सौंदर्य सिद्धिम क्लीं नमः

जिनके मुख से दुर्गंध आती हो या दांत हिल रहे हो यदि वो नित्य पिसते को खूब चबाकर खाए तो मुख की दुगंध हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाती है और हिलते दांत भी स्थिर हो जाते है.

जिसे अपनी देह की कृशता यानि दुबलापन मिटाना हो तो पिश्ते के साथ शक्कर का सेवन २ मॉस तक करे,दुबलापन दूर हो जाता है.

लोग अक्सर गरम पानी के साथ शहद लेते हैं मोटापा दूर करने के लिए,यदि उपरोक्त मंत्र के साथ मात्र १ माह ही प्रयोग करके देखे, लाभ देखकर आप खुद आश्चर्यचकित हो जायेंगे.

ठीक इसी प्रकार तुलसी की ११ पत्तियों को यदि छाछ के साथ १ माह सेवन किया जाये तो भी व्यर्थ की चर्बी सरलता से गलकर बाहर हो जाती है.

यदि व्यक्ति अपना वजन कम करना चाहता हो तो नीम के फूलों को पीसकर और कपडे से छानकर शहद और पानी के साथ सेवन करे,निश्चय ही वजन कम हो जायेगा.

हरसिंगार या पारिजात के पुष्पों का लेप चेहरे पर करने से चेहरे पर निखार आता है और निश्चय ही गोरापन बढ़ता है.

यदि तुलसी की पत्तियों को शहद के साथ लिया जाये तो पथरी होने की कोई सम्भावना नहीं रहती.

नीम्बू का रस या गुडहल की पत्ती पीसकर सर पर उस स्थान पर लेप करे जहाँ बाल झड गए हो,ये क्रिया २ मास तक करने पर पुनः बाल आने लगते हैं और काले हो जाते हैं.

 जिन लोगों को भी भोजन के तुरंत बाद मल त्याग करने की आदत होती है,यदि वो कचनार की कली का सेवन करे तो ये बीमारी दूर हो जाती है.

यदि मधुमेह की बीमारी हो तो मेथी के पत्तों का रस पीने से ये बीमारी दूर हो जाती है.

पुनर्नवा चूर्ण का नित्य २ ग्राम सेवन करने से कायाकल्प होता ही है और सौंदर्य की वृद्धि होती ही है.

यदि १ बूँद घृत को लगाकर धतूरे की पत्ती को तवे पर गरम कर स्त्री या लड़की अपने स्तन पर रख कर कस कर बाँध ले और रात भर रहने दे,दोनों तरफ १-१ पत्ती का ही प्रयोग करना है.निश्चय ही ७ दिन में पूर्ण उभार की प्राप्ति होती ही है,बड़ी बड़ी दवाइयां जो कार्य नही कर पाती,वो कार्य ये सामान्य सा दिखने वाला प्रयोग पूरा कर देता है और नारी के सौंदर्य को उभार देता है.

खीरे के रस में शहद मिलाकर पूरे शरीर और चेहरे पर लेप कर १५ मिनट रखे और बाद में कुनकुने पानी से स्नान कर ले,सारी झुर्रियाँ धीरे धीरे दूर हो जाती हैं.
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Despite of the fact that in Ayurved studies, there are many ways and means by which any one can gain the complete beauty, but if those processes are done with the below mentioned chants (Mantras),these Ayurvedic processes can give unimaginable and fast results…

In Ayurvedic also, no herbal plants can be intake, but due to the laziness of the people they have stopped using these processes due to which they are not getting the desired results….

You yourself do one thing that implies all the below processes one without the chants and the second time with these chants, the results will be unbelievable for you all…

If you want to go for any of the process related with the beauty then enchant that thing or the herb with the below chant 324 times and conduct the process…This is known as “Vajra Yaan Sadhna Mantra”which is self proven and it does not need any proof individually….

“Om Kleem Anang Ratye Poorn Sammohan Saundrya Siddhim Kleem Namah”

 क्लीं अनंग रत्यै पूर्ण सम्मोहन सौंदर्य सिद्धिम क्लीं नमः

The persons who are having problem of foul smell of mouth or the teeth’s are not strong should practice the chewing of Pista on daily basis, both the problems will get resolved…

Similarly, who wants to get overcome with the underweight problem one should intake Pista with the sugar for two months on regular basis; they will feel that their underweight problem is being resolved…

People often take honey with the warm water to remove the obesity but if the same process gets connected with the above mantra for one month, you will be surprised by seeing the results….

Similarly, if the process is done with the intake 11 leaves of basil (Tulsi) with the butter milk (Chhanch) for one month, the unwanted fat from the body will be dissolved easily…

If any person wants to loose the weight, the intake of grinded Neem flowers and by filtering it with honey and water will definitely give the desired results…

The face pack of Harsingar or Paarijaat flowers helps in increasing the fairness and the glow of the face…

 If anyone takes the Basil leaves (Tulsi) with the honey, there is no possibility for the Stone problem…

The paste of Lime and China rose (Gudhal) leaves if applied on the area where there is hair problem fall for the 2 months, the hair fall problem gets resolved and the new hair will be black ones…

The people who are having problem of excretion just after the meal, if they make habit of eating the Kachnar flower bud (kali), they will get rid of this problem…

If anyone is having Diabetes problem, the fenugreek leaves (Methi) juice is the best remedy for the cure of this disease…

The regular intake of 2 Gms. “Punarnava Choorn” helps in complete makeover and adds the glow in the beauty…

If any lady or girl ties the Dhatura(Harebell) leaf (after making it warm) on her breast(only 1 leaf on each breast) for the overnight,undoubtedly,the rise in the breast will be natural which is difficult by the use of various medicines and will add beauty in the lady figure with just this small process…

Apply face pack of Cucumber with honey on face for 15 minutes and then wash it off with the luke warm water at the time of bath, slowly and gradually, the wrinkles will get away…

AAYURVED JADI-BUTIYA.


रस विज्ञानज्योतिष और आयुर्वेद तंत्र ये तंत्र विज्ञान  की  ही शाखाए है. मेरे आध्यात्मिक और साधनात्मक काल में तंत्र और रसायन विज्ञान पर अन्वेषण करते समय गुरुदेव जी के आशिर्वाद मुझे ये अवसर प्राप्त हुआ कि मै उन दिव्य संतो और साधुओ से मिला और उन्होंने भी मुझे सभी विषयो पर विस्तृत रूप से जानकारी दी और साथ में उनका आशीर्वाद और निश्छल स्नेह भी. उसी दौरान मुझे एक दिव्य और अद्बुत आयुर्वेद तंत्रज्ञ से मिलने का अवसर भी प्राप्त हुआ. उन्होंने ना केवल मुझे ऐसे उपचार बताए जो रोगों कों समाप्त कर सकते है अपितु इन दिव्य जड़ी बूटियों से और तंत्र के माध्यम” से मुझे उन दिव्य जड़ी बूटियों के गुप्त रहस्यों कों भी समझाया. वास्तव में जब हम अपने आपको अपनी काया कों स्वस्थ और निरोगी रखते है तो वह आतंरिक और बाह्य रूप से और भी सौंदर्यवान होती जाती है...

कृपया ध्यान दे कि अपनी सौंदर्यता और आरोग्यता कों उपेक्षित करना हिंसा अधिनियम के अनुसार अपरोक्ष रूप से हानि ही पहुचाने का कार्य करते है. सो यहाँमै आपके समक्ष कुछ अनिवार्य बिंदुओ कों रखने जा रहा हू जिनसे ना केवल मैं लाभान्वित हुआ हू अपितु उन्हें अपने जीवन में उतारे भी है जिन्हें प्रमाणित देखा भी  है और वही आपको बताने जा रहा हू.

गंजेपन का उपचार– २५० ग्राम सरसों तेल कों कटोरीनुमा  बर्तन में उबालिएऔर धीरे धीरे थोड़ी थोड़ी मात्रा में मेहँदी के पत्ते उसमे डालिए.  जब पत्ते पूरी तरह जल जाए और ९० ग्राम ही तेल शेष बचे तो उसे छान ले.  और बोतल में भर ले. उस तेल से नित्य मसाज करे. कुछ ही महीनो में घनी मात्रा में गंजे सर पर बाल उग आयेंगे...

वनस्पतिया जो नेत्रश्लेष्मलाशोथ (कन्जक्टीवायटीस) कों प्रतिबन्ध करती है -  कुछ गोरखमुंडी के फूलों  कों लीजिए और बिना चबाये और बिना पानी पिए निगल ले. इस प्रकार एक फूल  निगलने से १ साल तक नेत्रश्लेष्मलाशोथ नहीं होता.. उसी प्रकार २ फूल निगलने से दो साल और इसी प्रकार फूलो कि मात्रा से वर्षों का अनुपात चमत्कारिक रूप से कार्य करता है.और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है की ये गोरखमुंडी के पुष्प और फल अभी होली ताका सहज प्राप्य भी हैं.

ऐसी वनस्पति जिससे एक दिन में बवासीर से निजात पाया जा सकता है – हंडे में ८ किलो इन्द्रायण के फल लें ले. और मरीज कों उस पर खड़े रहने के लिए कहदे और तब तक पाँव रखे रहे जब तक उसके मुंह में कड़वाहट नहीं आ जाती. फिर मरीज कों लेट जाने के लिए कहे. आधे घंटे में मरीज कों अत्यंत दुर्गन्धित मल होंगे और उसके बाद वह आने वाले लंबे समय के लिए इस रोग से मुक्त हो जाएगा.

महिलाओ में स्तनों कों सुदृढ़ सुगठित करने हेतु – स्त्री का सौंदर्य विभिन्न तथ्यों को संगठित कर पूर्णता प्राप्त करता है जिसमे से उसके शारीरिक उभारों का महत्वपूर्ण स्थान है और बहुधा रूप सौंदर्य होते हुए भी यदि अविकसित उभार हो तो ये प्रेम प्राप्ति और विवाह जैसे मसलों में भी नकारात्मक भूमिका निभाते हैं.बाजार में प्रचलित रासायनिक क्रीम की अपेक्षा आयुर्वेद में कुछ सरल और अत्यधिक प्रभावकारी प्रयोग बताये गए हैं उनमे से एक मैं यहाँ पर दे रहा हूँ. ये क्रिया अत्यंत ही सरल है और आयुर्वेद शास्त्रों में अनुभूत की हुई है. धतूरे के पत्तों कों गरम कर ले मध्यम आंच परऔर उसे स्तनों पर कस कर बाँध लेइस क्रिया को कुछ दिनों तक किया जाए तो अविकसित उभार एकदम दृढ़,पुष्ट और उन्नत हो जाते है. और स्त्रियों का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है बिना कुछ व्यय किये.

Tishn Vashikaran Mantra


षट्कर्म प्रयोगों की अपनी ही एक उपयोगिता हैं और उनका निर्माण भी मानव जीवन को सुखमय और उन्नति युक्त बनाये रखने के लिए हुआ हैं, यह जरुर हैं की किस भावना और उदेश्य को लेकर इन प्रयोगों को किया जाए, उस पर व्यक्ति की अपनी  ही एक सोच  और कारण हो़ता हैं,एक योग्य साधक परिस्थति के अनुसार निर्णय कर अपने आप को जब उपयुक्त समझता हैं तब इन विधाओ का प्रयोग करता हैं न की किसी के  उकसावे मे आकर या  किसी भावना के वश मे होकर क्योंकि प्रभाव तो होता ही हैं .
  इन षट्कर्म प्रयोग मे एक प्रयोग हैं  वशीकरण ..यूँ  तो कहा भी गया हैं वशीकरण एक मंत्र हैं तज दे  वचन कठोर .पर हर जगह हर परिस्थितयों मे  तो यह बात नही हो सकती हैं न ..कई की बार ऐसी परिस्थितयां बन् जाती हैं की  व्यक्ति के हाथ मे प्रयास मात्र  इतने से कुछ नही होता बल्कि  उसे साधना का भी सहयोग लेना ही पड़ता  हैं,और साधना का मतलब ही हैं की जो  मर्यादानुकूल,सामाजिक नियमानुकुल हो उसे यदि वह भाग्य मे न हो  तो भी उसे प्राप्त कर लेना.
वशीकरण साधनाओ  को बहुत ही हेय दृष्टी से देखा जाता हैं कारण भी हैं क्योंकि अनेको ने इस साधनाओ का  दुरुपयोग ही ज्यादा किया हैं.पर इससे  इन साधनाओ की उपयोगिता  तो समाप्त नही हो जाती  हैं.एक सुयोग्य साधक का  कर्तव्य हैं की  जब भी समय मिले इन साधनाओ  को सम्पन्न करता जाए  तभी तो साधना जगत मे निरंतरता बनी रही सकती हैं,
  आज के समय मे...  क्योंकि यह  युग शुक्र ग्रह से कहीं ज्यदा प्रभावित हैं तो जीवन मे  सुख विलास  की चीजों के प्रति व्यक्ति का  रुझान कहीं ज्यादा  होता गया हैं और जीवन मे प्रेम और स्नेह की अपनी ही एक महत्वता हैं पर जब किसी भी कारण  से परिस्थितियाँ साथ न दे  रही हो तब सारी परिस्थिति  को अपने अनुकूल करने के लिए इन सरल  साधनाओ  की अपनी ही एक उपयोगिता हैं जिसे कमतर नही आँका जा सकता हैं .
पर इन साधनाओ का प्रयोग कर किसी का जीवन नष्ट करना या अपनी कुत्सिक  भावनाओं  की पूर्ति कतई उचित नही हैं ऐसा करने पर हानि  ही ज्यादा  होती हैं .क्योंकि आज समय ऐसा हैं कि लोग राह चलती लड़की पर प्रयोग कर दें.ऐसा कतई न करें अन्यथा कुछ भी किसी के साथ अशुभ किये जाने पर व्यक्ति उसका स्वयं ही जबाब देह  होगा .
आसन और वस्त्र पीले रंग के हो .
दिन शुक्रवार का हो
समय प्रातः या रात्रि काल
पीले रंग की हकिक माला मंत्र जप केलिए उपयुक्त होगी.  
अमुक की जगह  इच्छित व्यक्ति का नाम ले  जिसे आप अपने अनुकूल करना चाहते  हैं वह स्त्री, पुरुष,अधिकारी कोई भी हो सकता हैं.


मंत्र:
 ह्रीम ह्रीम अमुक वश्यय वश्यय हूं फट । ।

   
  आपको दस हजार मंत्र  करना हैं और मंत्र जप पूरा  होने   के बाद  एक हजार बार इसी मंत्र की आहुति  देना हैं ,आहुति आप  हवन सामग्री मार्केट मे मिलती हैं, वहां से ले आ सकते हैं .दिनों की सख्या निश्चित नही हैं पर आप पांच  या सात  दिन मे पूरा कर ले क्योंकि मात्र  १०० माला  मंत्र जप तो करना हैं .
प्रयोग सम्पन्न होने पर आप स्वयम ही पायेंगे की किस तरह आपके लिए अनुकूल वातावरण  बन् गया हैं, पर ध्यान रहे इस प्रकार के मंत्र मे आपकी एकाग्रता  और निष्ठा  और इनके प्रति आपका विश्वास कहीं जयादा गहरी भूमिका निभाता हैं . 

शिव गोरख प्रयोग



भगवान शिव का वर्णन करना भी क्या संभव है. एक तरफ वह भोलेपन की सर्व उच्चावस्था मे रह कर भोलेनाथ के रूप मे पूजित है वही दूसरी और महाकाल के रूम मे साक्षात प्रलय रुपी भी. निर्लिप्त स्मशानवासी हो कर भी वह देवताओं मे उच्च है तथा महादेव रूप मे पूजित है. तो इस निर्लिप्तता मे भी सर्व कल्याण की भावना समाहित हो कर समस्त जिव को बचाने के लिए विषपान करने वाले नीलकंठ भी यही है. मोह से दूर वह निरंतर समाधि रत रहने वाले महेश भी उनका रूप है तथा सती के अग्निकुंड मे दाह के बाद ब्रम्हांड को कंपाने वाले, तांडव के माध्यम से तीनों लोक को एक ही बार मे भयभीत करने वाले नटराज भी यही है. संहार क्रम के देवता होने पर भी अपने मृत्युंजय रूप मे भक्तो को हमेशा अभय प्रदान करते है. अत्यंत ही विचित्र तथा निराला रूप, जो हमें उनकी तरफ श्रध्धा प्रदर्शित करने के लिए प्रेम से मजबूर ही कर दे. सदाशिव तो हमेशा से साधको के मध्य प्रिय रहे है, अत्यधिक करुणामय होने के कारण साधको की अभिलाषा वह शीघ्रातिशिघ्र पूर्ण करते है.


शैव साधना और नाथयोगियो का सबंध तो अपने आप मे विख्यात है. भगवान के अघोरेश्वर स्वरुप तथा आदिनाथ भोलेनाथ का स्वरुप अपने आप मे इन योगियो के मध्य विख्यात रहा है. शिव तो अपने आप मे तन्त्र के आदिपुरुष रहे है. इस प्रकार उच्च कोटि के नाथयोगियो की शिव साधना अपने आप मे अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है. शिवरात्री तो इन साधको के लिए कोई महाउत्सव से कम नहीं है. एक धारणा यह है की शिव रात्री के दिन साधक अगर शिव पूजन और मंत्र जाप करे तो भगवान शिव साधक के पास जाते ही है. वैसे भी यह महारात्रि तंत्र की द्रष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण समय है. अगर इस समय पर शिव साधना की जाए तो चेतना की व्यापकता होने के कारण साधक को सफलता प्राप्ति की संभावना तीव्र होती है.


नाथयोगियो के गुप्त प्रयोग अपने आप मे बेजोड होते है. चाहे वह शिव साधना से सबंधित हो या शक्ति साधना के सबंध मे. इन साधनाओ का विशेष महत्व इस लिए भी है की सिद्ध मंत्र होने के कारण इन पर देवी देवताओं की विभ्भिन शक्तिया वचन बद्ध हो कर आशीर्वाद देती ही है साथ ही साथ साधक को नाथसिद्धो का आशीष भी प्राप्त होता है. इस प्रकार ऐसे प्रयोग अपने आप मे बहोत ही प्रभावकारी है. शिवरात्री पर किये जाने वाले गुप्त प्रयोगों मे से एक प्रयोग है अमोध शिव गोरख प्रयोग. यह गुप्त प्रयोग श्री गोरखनाथ प्रणित है.


साधक को पुरे दिन निराहार रहना चाहिए, दूध तथा फल लिए जा सकते है. रात्री काल मे १० बजे के बाद  साधक सर्व प्रथम गुरु पूजन गणेश पूजन सम्प्पन करे तथा अपने पास ही सद्गुरु का आसान बिछाए और कल्पना करे की वह उस आसान पर विराज मान है. उसके बाद अपने सामने पारद शिवलिंग स्थापित करे अगर पारद शिवलिंग संभव नहीं है तो किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापीत कर उसका पंचोपचार पूजन करे. धतूरे के पुष्प अर्पित करे. इसमें साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे या फिर काले रंग के. उसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र का ३ घंटे के लिए जाप करे. साधक थक जाए तो बिच मे कुछ देर के लिए विराम ले सकता है लेकिन आसान से उठे नहीं. यह मंत्र जाप ३:३० बजने से पहले हो जाना चाहिए.

 शिव गोरख महादेव कैलाश से आओ भूत को लाओ पलित को लाओ प्रेत को लाओ राक्षस को लाओ, आओ आओ धूणी जमाओ शिव गोरख शम्भू सिद्ध गुरु का आसन आण गोरख सिद्ध की आदेश आदेश आदेश

मंत्र जाप समाप्त होते होते साधक को इस प्रयोग की तीव्रता का अनुभव होगा. यह प्रयोग अत्यधिक गुप्त और महत्वपूर्ण है क्यों की यह सिर्फ महाशिवरात्री पर किया जाने वाला प्रयोग है. और इस प्रयोग के माध्यम से मंत्र जाप पूरा होते होते साधक उसी रात्री मे भगवान शिव के बिम्बात्मक दर्शन कर लेता है. एक ही रात्रि मे साधक भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है और अपने जीवन को धन्य बना सकता है. अगर इस प्रयोग मे साधक की कही चूक भी हो जाए तो भी उसे भगवान शिव के साहचर्य की अनुभूति निश्चित रूप से होती ही है.




It is almost impossible to describe lord Shiva in the words. On one side he is on holder of maximum innocence in the universe with his worshiping form of Bholenath where as on the other hand he is Holocaust in the form of Mahakala. With complete unattached mind, living in seminary he is higher in the category of the gods and worshiped as Mahadeva. But with this nonattachment is also followed by feelings of complete welfare of mankind and thus the one who drunk the poison to save universal belongings is worshiped as nilkantha. His forms also include Mahesha who stays in Samadhi constantly with no amount of enchantment. And the one who thrilled whole universe when sati went to Agni Kunda, the one who can make fear all the three worlds with Taandava, the Nataraj also belongs to him. While being god of the destruction, he also provides fearlessness from these to his devotees in the form of Mrutyunjaya. His form is so unique and strange that always force us with love to devote our self towards him. Sadaashiv has always remained famous among sadhaka, being complete pitiful he sooner provides the desired results to sadhaka.


Relation of Shaiva sadhana and NathYogis has remained famous. Agoreshwar and aadinaath Bholenaath form of the god has remained famous among these Yogis. Shiv is provider of tantra.  This way shiva sadhana of higher NathYogis has remained very important. Shiv raatri is one of the biggest days for this sect.  This is a belief that anyone who do poojan and mantra chantings of the lord shiva on shivaratri, lord shiva will for sure visit that place. On other side, time of MahaShivaratri is also very important on the tantra point of view. If shiva sadhana is done on this particular time then because of the higher energy flow, possibilities to have accomplishments remain at its maximum.


The secret rituals of NathYogis are imcomparable. Rather it belongs to Shiva sadhana or shakti sadhana. These sadhana consist big importance because of being siddha mantra, various gods and goddesses bliss the sadhaka bounded by the promises with that sadhak also receives blessings of Nath Siddhas. This way such prayogs are very effective. One of such prayog, done on shivratri is Amodh Shiva Gorakh Prayoga. This prayoga was formed by Shri Gorakshnaath.


Sadhak should not have food in day time but can have milk and fruits. In the night time after 10PM one should do guru poojan followed by ganesha poojan and one should spread aasana for the guru imaging his presence on it, just near to the aasan of one’s self. After that sadhak should establish paarad shivalinga in front if that is not possible one may establish any shivalinga and do panchopachaar poojan. Flowers of Dhatoora should be offered. Direction should be north. Cloths and aasan should be either white or black in color. After poojan process one should chant following mantra for 3 hours. If sadhak feels tired then one can take rest for few minutes inbetween but sadhak should not stood up from the aasana. This mantra chantings should be completed before 3:30AM.



Om Shiv Gorakh Mahaadev Kailaash se aao bhoot ko laao palit ko laao pret ko laao raakshas ko laao aao aao dhooni jamaao shiv gorakh shambhoo siddh guru ka aasan aan gorakh siddh ki aadesh aadesh aadesh


When mantra jaap is about to get over sadhak will feel the intensity of the mantra force. This process is very secret and important because this process could be done on Mahashivaraati Only. And with This prayog while mantra chantings is about to get over, sadhak gets glimpses of lord shiva. In one single night sadhak can have blessings of lord shiva and can bliss his whole life. If sadhak makes any minor mistakes in this process then too he will feel the presence of lord shiva for sure.

Friday, 23 December 2016

गुरु गोरख नाथ चालीसा (GURU GORAKH NATH CHALISA)



दोहा

गणपति  गिरजा  पुत्र  को सुमिरु  बारम्बार  |
हाथ  जोड़  बिनती  करू शारद  नाम  आधार ||

चोपाई 

जय  जय  जय  गोरख  अविनाशी  | कृपा  करो  गुरुदेव  प्रकाशी  ||
जय  जय  जय  गोरख   गुण  ज्ञानी  | इच्छा  रूप  योगी  वरदानी  ||
अलख  निरंजन  तुम्हरो  नामा  | सदा  करो  भक्त्तन  हित  कामा  ||
नाम  तुम्हारो  जो  कोई  गावे  | जन्म  जन्म  के  दुःख  मिट  जावे  ||
जो  कोई  गोरख  नाम  सुनावे  | भूत  पिसाच  निकट  नहीं  आवे||
ज्ञान  तुम्हारा  योग  से  पावे  | रूप  तुम्हारा  लख्या  न  जावे  ||
निराकार  तुम  हो  निर्वाणी  | महिमा  तुम्हारी  वेद  न  जानी  ||
घट - घट  के  तुम  अंतर्यामी  | सिद्ध   चोरासी  करे  परनामी  ||
भस्म  अंग  गल  नांद  विराजे | जटा  शीश  अति  सुन्दर  साजे  ||
तुम  बिन  देव  और  नहीं  दूजा  | देव  मुनिजन  करते  पूजा  ||
चिदानंद  संतन   हितकारी  | मंगल  करण  अमंगल  हारी  ||
पूरण  ब्रह्मा सकल  घट  वासी  | गोरख  नाथ  सकल  प्रकाशी ||
गोरख  गोरख  जो  कोई  धियावे  | ब्रह्म   रूप  के  दर्शन  पावे ||
शंकर  रूप  धर  डमरू  बाजे  | कानन  कुंडल  सुन्दर  साजे  ||
नित्यानंद  है  नाम  तुम्हारा  | असुर  मार  भक्तन  रखवारा  ||
अति  विशाल  है  रूप  तुम्हारा  | सुर  नर  मुनि  जन  पावे  न  पारा  ||
दीनबंधु  दीनन  हितकारी  | हरो  पाप  हम  शरण  तुम्हारी ||
योग  युक्ति  में  हो  प्रकाशा | सदा  करो  संतान  तन  बासा ||
प्रात : काल  ले नाम  तुम्हारा | सिद्धि  बढे  अरु  योग  प्रचारा ||
हठ  हठ  हठ  गोरछ  हठीले  | मर  मर  वैरी  के  कीले ||
चल चल चल गोरख  विकराला | दुश्मन  मार  करो  बेहाला ||
जय जय  जय  गोरख  अविनाशी | अपने  जन  की  हरो  चोरासी  ||
अचल  अगम  है  गोरख  योगी  | सिद्धि  दियो  हरो  रस  भोगी  ||
काटो  मार्ग  यम  को  तुम आई | तुम  बिन  मेरा  कोन  सहाई ||
अजर  अमर  है  तुम्हारी  देहा  | सनकादिक  सब  जोरहि  नेहा  ||
कोटिन  रवि  सम  तेज  तुम्हारा  | है  प्रसिद्ध  जगत  उजियारा  || 
योगी  लखे  तुम्हारी  माया  | पार  ब्रह्म  से  ध्यान   लगाया  ||
ध्यान  तुम्हारा  जो  कोई  लावे  | अष्ट  सिद्धि  नव  निधि  पा जावे  ||
शिव  गोरख  है  नाम  तुम्हारा  | पापी  दुष्ट अधम  को  तारा  ||
अगम  अगोचर  निर्भय  नाथा | सदा  रहो  संतन  के  साथा ||
शंकर  रूप  अवतार  तुम्हारा  | गोपीचंद, भरथरी  को  तारा  ||
सुन  लीजो  प्रभु  अरज  हमारी  | कृपासिन्धु  योगी  ब्रहमचारी  ||
पूर्ण  आस  दास  की   कीजे  | सेवक  जान  ज्ञान  को  दीजे  ||
पतित  पवन  अधम  अधारा  | तिनके  हेतु  तुम  लेत  अवतारा  ||
अखल  निरंजन  नाम  तुम्हारा  | अगम  पंथ  जिन  योग  प्रचारा  ||
जय  जय  जय  गोरख  भगवाना | सदा  करो  भक्त्तन कल्याना ||
जय  जय  जय  गोरख  अविनाशी  | सेवा  करे  सिद्ध  चोरासी  ||
जो  यह  पढ़े  गोरख  चालीसा  | होए  सिद्ध  साक्षी  जगदीशा ||
हाथ  जोड़कर  ध्यान  लगावे  | और  श्रद्धा  से  भेंट  चढ़ावे  ||


बारह  पाठ  पढ़े  नित  जोई  | मनोकामना  पूर्ण  होई  || 

Thursday, 22 December 2016

महायोगी गुरु गोरखनाथ



गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।


गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।


गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया। शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय में आ मिले थे।गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।


जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठ‍िन (आड़े-त‍िरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अ‍चम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि ‘यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।’


गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।


महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।


गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है। 


इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।


वर्तमान मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है। कबीर गोरक्षनाथ की ‘गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ‘ में उन्होनें अपने आपको मत्स्येंद्रनाथ से पूर्ववर्ती योगी थे, किन्तु अब उन्हें और शिव को एक ही माना जाता है और इस नाम का प्रयोग भगवान शिव अर्थात् सर्वश्रेष्ठ योगी के संप्रदाय को उद्गम के संधान की कोशिश के अंतर्गत किया जाता है।


संत कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के भक्त कवि थे। इनके उपदेशों से गुरुनानक भी लाभान्वित हुए थे। संत कबीर को भी गोरक्षनाथ जी का समकालीन माना जाता हैं। “गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ” में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है। इस आधार पर इतिहासकर विल्सन गोरक्षनाथ जी को पंद्रहवीं शताब्दी का मानते हैं।


पंजाब में चली आ रही एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पूर्ण भगत  पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।


बंगाल से लेकर पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य (चंन्द्रगुप्त द्वितीय) के नाम कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।


गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।


गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया। शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय में आ मिले थे।गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठ‍िन (आड़े-त‍िरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अ‍चम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि ‘यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।’


गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।


महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।


गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है। 


इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।


वर्तमान मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है। कबीर गोरक्षनाथ की ‘गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ‘ में उन्होनें अपने आपको मत्स्येंद्रनाथ से पूर्ववर्ती योगी थे, किन्तु अब उन्हें और शिव को एक ही माना जाता है और इस नाम का प्रयोग भगवान शिव अर्थात् सर्वश्रेष्ठ योगी के संप्रदाय को उद्गम के संधान की कोशिश के अंतर्गत किया जाता है।


संत कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के भक्त कवि थे। इनके उपदेशों से गुरुनानक भी लाभान्वित हुए थे। संत कबीर को भी गोरक्षनाथ जी का समकालीन माना जाता हैं। “गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ” में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है। इस आधार पर इतिहासकर विल्सन गोरक्षनाथ जी को पंद्रहवीं शताब्दी का मानते हैं।


पंजाब में चली आ रही एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पूर्ण भगत  पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।


बंगाल से लेकर पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य (चंन्द्रगुप्त द्वितीय) के नाम कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।